रिपोर्ट चन्दन सिंह: कोसी इलाके में जिन्दगी का फलसफा जंग से शुरू और जंग प़र खत्म है.यहाँ प़र साँसे किसी तरह से चल सके बस इसकी जंग है.ना साबूत घर हैं और ना ही हसीन सपनों की बड़ी खेप.दो रोटी के जुगाड़ में ही हिज्र और खलिस में जिन्दगी कब दामन छोड़ जाए कहना मुमकिन नहीं.पूर्वी कोसी तटबंध के भीतर पिछले साल मची तबाही से जो लोग बेघर हुए थे उसमें से बहुत सारे परिवार आजतक नवहट्टा प्रखंड के पहाडपुर के समीप रिंग बाँध प़र अपना आशियाना बनाकर जिन्दगी के दिन काट रहे हैं.ना रोजी,ना रोजगार,बस किसी तरह मांग--चांगकर या छोटा--मोटा कोई काम मिला तो उसे करके जो कुछ मिला उससे घर--परिवार की गाड़ी खींच रही है.यहाँ दर्जनों परिवार ऐसे हैं जहां की जिन्दगी सिसक--सिसक कर व्यवस्था को तमाचे लगा रहा है.बांस--बल्ले प़र टिकी झोपडी,टिन--कनस्तर में जीवन की कुल ज़मा पूंजी.यहाँ बेबस और मजबूर जिन्दगी आह और सिसकियों में बस छटपटा रही है.
बानगी भर के लिये आज हम आपको नवहट्टा प्रखंड के पहाडपुर गाँव के समीप स्थित रिंग बाँध पर बसे ये दर्जनों किस्मत के मारे परिवार की तस्वीर दिखा रहे है जो पिछले साल से दर्द से सराबोर होकर किसी तरह से जीवन जीने को लाचार और बदहाल है. सेकड़ों विस्थापित परिवार नवहट्टा प्रखंड के तटबंध के भीतर रामपुर,छतवन,केदली और असई गाँव के हैं कोसी ने पिछले साल इनका सबकुछ छिनकर इन्हें बेघर कर दिया था.ये सभी और लोगों की तरह पुनः अपने गाँव नहीं लौट सके.इनकी मज़बूरी औरों से भारी थी.ये उजड़ने और फिर बसने का सामर्थ्य नहीं रखते थे सो अभीतक बस यहीं के होकर रह गए हैं.इनलोगों को उम्मीद थी की सरकार और समृद्ध तंत्र उनपर मेहरबान होगा और राहत की उनपर बारिश होगी.इनकी कठिन जिन्दगी में भी सुकून के क्षण मयस्सर होंगे.लेकिन इनकी बदकिस्मती देखिये हाकिमों के हवाई यात्रा के दौरान किसी की इनपर नजर नहीं गयी और ए.सी कमरे में बैठ कर बन रही योजनाओं में भी इन्हें नहीं रखा गया.बेचारे बेदम और सिर्फ बेदम ही रहे.इन फटेहालों के दिन बहुराने के आजतक किसी ने जतन नहीं किये.
सरकार इन पीड़ितों को राहत पहुंचाने के लाख दावे कर ले लेकिन सहरसा टाइम्स ये आपको बताता है की राहत इनतक नहीं पहुंची है.इस सच को तस्वीरें बयां कर रहीं हैं.सरकार के दावों से इतर सरजमीनी सच्चाई कुछ और है.कागज़ पर आंकड़ों की बाजीगिरी होती है लेकिन सच आखिर सच होता है.कोसी के बाढ़ विस्थापितों की ईमानदार चिंता आजतक किसी भी सरकार ने नहीं की है.हर साल बाढ़ के समय अनगिनत लखपति तैयार होते हैं लेकिन ये पीड़ित बस पीड़ित ही रहते है.इनकी झोली पहले से ही खाली थी और अभीतक खाली ही है.
सरकार इन पीड़ितों को राहत पहुंचाने के लाख दावे कर ले लेकिन सहरसा टाइम्स ये आपको बताता है की राहत इनतक नहीं पहुंची है.इस सच को तस्वीरें बयां कर रहीं हैं.सरकार के दावों से इतर सरजमीनी सच्चाई कुछ और है.कागज़ पर आंकड़ों की बाजीगिरी होती है लेकिन सच आखिर सच होता है.कोसी के बाढ़ विस्थापितों की ईमानदार चिंता आजतक किसी भी सरकार ने नहीं की है.हर साल बाढ़ के समय अनगिनत लखपति तैयार होते हैं लेकिन ये पीड़ित बस पीड़ित ही रहते है.इनकी झोली पहले से ही खाली थी और अभीतक खाली ही है.
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