मार्च 30, 2012

सुशासन का बेशर्म बालिका विद्यालय

अन्य पिछड़ा वर्ग बालिका आवासीय विद्यालय सहरसा
 सरकार शिक्षा के क्षेत्र में सुधार और बेहतर इंतजाम के लाख दावे कर ले लेकिन सहरसा जिले की शिक्षा व्यवस्था बिल्कुल भगवान् भरोसे है.कोसी प्रमंडलीय मुख्यालय सहरसा में अन्य पिछड़ा वर्ग बालिका आवासीय विद्यालय एक ऐसा विद्यालय है जो सरकार के शिक्षा इंतजामात की बखिया उधेड़ कर,सरकार के मुंह पर कालिख पोत रहा है.वर्ष 2004 से संचालित हो रहे इस बालिका आवासीय विद्यालय में शिक्षा के नाम पर बस खेल--तमाशा किया जा रहा है.इस विद्यालय में कक्षा छः से लेकर टेन प्लस टू तक की पढाई की व्यवस्था है.प्रति वर्ष कक्षा छः में 40 बच्चियों के नामांकन का प्रावधान है.यही बच्चियां टेन प्लस टू तक का सफ़र तय करती हैं.विभागीय लापरवाही की वजह से 2007 और 2008 में बचियों के नामांकन नहीं किये गए.अभी कक्षा छः,सात और आठ में कुल 120 बच्चियां नामांकित हैं.यह आवासीय विद्यालय जिला गर्ल्स स्कूल के भवन में से कुछ कमरे हड़प कर संचालित किये जा रहे हैं.यह विद्यालय कुल मिलाकर सात कमरे का है जिसमें एक रसोई घर है और एक शिक्षक और प्रिंसिपल के बैठने का कक्ष.शेष पाँच कमरों में एक कमरा बिल्कुल क्षतिग्रस्त है.यानि चार कमरे में 120 बच्चियां भेड़-बकरी की तरह रहती हैं.एक कमरे में ही बचियाँ ना केवल सोती और खाती हैं बल्कि उनकी कक्षा भी उसी कमरे में लगती है.भवन दरके हुए हैं तो खिडकियों के पल्ले गायब हैं.सुरक्षा के नाम पर मजाक बनी बांस की टाटी खड़ी है.इस अजूबे स्कूल में पुरुष शिक्षकों का ही बोलबाला है.छात्रावास अधीक्षक तक पुरुष हैं.स्नानगृह खुले में है जो कुछ अलग कहानी ही बयाँ कर रहा है.जिला कल्याण विभाग के मातहत चलने वाला यह विद्यालय बच्चियों के भविष्य संवारने की बजाय उनके ना केवल भविष्य  बल्कि उनकी जिन्दगी से भी खिलवाड़ करने वाला प्रतीत हो रहा है. इस विद्यालय में कहने के लिए सात विषयों की पढाई होती है.शिक्षक केवल छः हैं.जिसमें एक प्रिंसिपल हैं जिनका अधिकांश समय स्कूल के कागजात सँभालने और विभागीय मीटिंग में चला जाता है.यहाँ कम्प्यूटर शिक्षा की भी व्यवस्था है लेकिन कम्प्यूटर जिला कल्याण विभाग में ही रखे हुए हैं.विद्यालय उसे आजतक नहीं लाया जा सका.हर साल कम्प्यूटर प्रशिक्षण के नाम पर पैसा आता है लेकिन विभाग उसे खा जाता है.इस विद्यालय में विज्ञान के लिए कोई प्रयोगशाला भी नहीं है.दो शिक्षिकाएं हैं जो अपनी मर्जी से कभी--कभार आकर बस हाजिरी बना जाती हैं.
सतरगी सपनों को बेहतर मुकाम देने की जगह इस स्कूल में बच्चियों की अस्मत और जिन्दगी दोनों दाँव पर लगी हुई है रहती है .यह हम नहीं कह रहे बल्कि राज्य सरकार के नुमाईंदे ही कह रहे हैं.हम इतना जरुर कह रहे हैं की बच्चियों के भविष्य के साथ यहाँ खिलवाड़ के साथ--साथ बच्चियों के मद की राशि का जमके बन्दर बाँट भी हो रहा है.

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।