बीते कल पूरा सहरसा ऐसे वाकये का गवाह बना जिसकी कल्पना भर से रूहें थर्रा जाए.करीब साढ़े छः घंटे तक पुलिस और छात्रों के बीच ना केवल जमकर पत्थरबाजी हुई बल्कि ताबड़तोड़,हवा में गोलियां चलाने के साथ-साथ आंसू गैस के गोले भी छोड़े गए.अपने साथी की मौत से नाराज छात्रों का गुस्सा जो एक बार फूटा तो फिर थमने की बजाय और फूटता ही चला गया.ग्यारह बजे दिन से छात्रों ने संगठित होकर जिला मुख्यालय स्थित स्कूलों को पहले अपना निशाना बनाया जहां उन्होनें जमकर तोड़फोड़ की.उसके बाद छात्रों का काफिला बाजार में घूम--घूमकर तोड़फोड़ और आगजनी की घटना को अंजाम देने लगा.मौका रहते पुलिस या फिर प्रशासन के अधिकारियों ने तब इन्हें रोकने की कोशिश नहीं की नतीजतन इनका मनोबल बढ़ता गया और बलबे प़र आमदा ये छात्र फिर सदर थाने में घुसकर ना केवल जमकर पत्थरबाजी की बल्कि एस.डी.पी.ओ राज कुमार कर्ण और एस.डी.ओ राजेश कुमार के साथ--साथ पुलिस जवानों को दौड़ा--दौड़ा कर पीटा.इस आक्रमण में एस.डी.पी.ओ और एस.डी.ओ के साथ--साथ कई जवान भी घायल हुए.धीरे--धीरे छात्रों की संख्यां में और इजाफा होता गया और उसी रफ़्तार में इनके उत्पात भी बढ़ते गए.स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने भी छात्रों को भरपूर समझाने का प्रयास किया लेकिन वे कामयाब नहीं हो सके.छात्रों का कोई नेतृत्वकर्ता नहीं था.हर छात्र खुद नेतृत्वकर्ता था.इन्हें समझाने में पुलिस प्रशासन के अधिकारी भी नाकामयाब साबित हो रहे थे.ग्यारह बजे से तीन बजे दिन तक पूरा जिला मुख्यालय रण-क्षेत्र में तब्दील था.पुलिस अधीक्षक मोहम्मद रहमान अकेले स्थिति को काबू करने में अपना सबकुछ झोंके रहे और पुलिस को नियंत्रण में रखा लेकिन तीन बजे इस मामले की कमान दरभंगा प्रक्षेत्र के आईजी राकेश कुमार मिश्रा ने संभाली.मिश्रा ने फिर आतातायी बने छात्रों को काबू में करने के लिए सुपौल और मधेपुरा के एस.पी और जवानों को बुलाकर इस काम में लगाया.किसी तरह से स्थति को काबू में तो कर लिया गया है लेकिन यह स्थायी साबित होगा की नहीं इसपर संसय बरकरार है.इस संग्राम में जहां दो छात्र गोली लगने से जख्मी हुए हैं वहीँ दर्जनों छात्र पुलिस की लाठी से जख्मी हुए हैं.दो अधिकारी सहित दो दर्जन से ज्यादा जवान भी जख्मी हुए हैं. दो दर्जन से ज्यादा छात्र इस अफरातफरी में जख्मी हुए हैं.दो छात्रों को क्रमशः हाथ और पाँव में गोली लगी है.दो दर्जन से अधिक जवान और दो अधिकारी भी जख्मी हुए हैं.आईजी के कमान संभलते ही पुलिस जवानों का मनोबल और बढ़ गया.पूरा शहर पुलिस छावनी में तब्दील है .बज्रवाहन सहित पुलिस सायरन लगी गाड़ियां फिर थोक में सड़कों प़र दौड़ने लगी.फिर दौड़ा--दौड़ा के छात्रों को पीटने की कारवाई अपने परवान प़र थी.इस दौरान मीडियाकर्मी भी थाने के अंदर एक तरह से नजर बन्द रहे.स्थानीय जनप्रतिनिधि पुलिस के धैर्य की तारीफ़ कर रहे हैं.इनकी मानें तो यह सब प्रशासन की कमजोरी का नतीजा है.नो इंट्री में बड़ी गाड़ी को चलाते रहने से भीड़--भाड़ वाले इलाके में ऐसे हादसे होते ही रहेंगे.रैक पॉइंट और ओवर ब्रिज नहीं होने की वजह से शहर में हमेशा जाम की स्थिति बनी रहती है.ऐसे में सड़कें लोगों से लबालब रहती हैं.जाहिर सी बात है ऐसे माहौल में बड़ी गाड़ियां रफ़्तार में चलेंगी तो दुर्घटना तो होगी ही.
फिलहाल बल प्रयोग से पुलिस ने मामले को शांत तो करा लिया है लेकिन यह शान्ति स्थायी तौर प़र बहाल रह सकेगी कहना नामुमकिन है.जहांतक मेरी समझ जाती है इस घटना के पीछे सिर्फ छात्र तो कतई नहीं थे.छात्रों को आगे करके पीछे ऐसे लोगों के कुनबे के होने की आशंका है जो पुलिस की कार्यशैली से बेहद खफा थे.जाहिर तौर प़र इस भीड़ में आसामाजिक तत्व तो होंगे ही.अगर यह सच है तो भी इस घटना को अगर पुलिस--प्रशासन के अधिकारी छात्र की मौत के वक्त से ही गंभीरता से लेते तो यह संग्राम नहीं देखना पड़ता.पुलिस--प्रशासन की ढिलाई की वजह से छात्रों और गुंडा तत्वों को इकठ्ठा होने का वक्त मिला और वे एक तरह से पूरे शहर प़र कब्ज़ा करके घटना दर घटना को अंजाम देते रहे.
बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है यह सब। सहररसा शहर का विस्तार तेजी से हो रहा है, लेकिन परिवहन समेत तमाम व्यवस्था सत्तर दशक की ही है।
जवाब देंहटाएंक्या किसी नेता-अधिकारी-व्यवसायी ने इसके बारे में कभी सोचा ? सच तो यह है कि पटना या नयी दिल्ली में कोशी की कभी चर्चा ही नहीं होती। कोसी सच में नेताविहीन है।