मुकेश कुमार सिंह की रिपोर्ट: सहरसा रेल पुलिस को एक बड़ी कामयाबी मिली.रेल पुलिस ने चाईल्ड लाईन संस्था
के गुप्त सूचना पर सुबह
करीब साढ़े आठ बजे सहरसा रेलवे जनसेवा एक्सप्रेस जो सहरसा से पंजाब जाती है
पर सवार तीन दलाल
सहित सोलह मासूम बच्चों को अपनी गिरफ्त में ले लिया.इन मासूमों के परिजनों
को ये दलाल महज दो से दस हजार रूपये देकर
मजदूरी कराने के नाम पर जालंधर ले जा रहे थे.बताते चलें की ये बच्चे
सुपौल,अररिया जिले के के अलावे पड़ोसी देश नेपाल के रहने वाले हैं जबकि दो
दलाल मधेपुरा और एक दलाल सुपौल जिला का रहने वाला है.रेल पुलिस और चाईल्ड
लाईन से जहां ने बच्चों के परिजनों को बच्चों की
बरामदगी की जहां सूचना दे दी है वहीँ आगे की तफ्तीश और में भी जुटी हुयी
है.
हम तो पेट की भूख मिटाने की जंग लड़ रहे हैं.हमें सपने
देखने की आजादी नहीं है.जी हाँ! कोसी इलाके में बच्चे कच्ची उम्र में ही
पढाई कर ऊँची मंजिल पाने के सपनों को कुचलकर कुछ काम कर रोजी--रोटी के
इंतजाम में जुट जाते हैं.आंकड़े गवाह हैं की मानव तस्करों की गिद्ध दृष्टि
इस इलाके प़र लगी रहती है जहां के मजबूर माँ--बाप नाना तरह के शब्जबाग के
झांसे में आकर अपने बच्चों का सौदा मानव सौदागरों से करने से भी गुरेज नहीं
करते हैं.रेल थाना में लाये गए ये बच्चे पंजाब के जालंधर ले जाए जाने के दौरान आज जनसेवा एक्सप्रेस से बरामद
किये गए हैं.दलाल इन्हें बहला--फुसलाकर जालंधर ले जा रहे थे.यह सच है की जिन
मासूम हाथों में कलम--किताब होनी चाहिए वह मज़बूरी में परदेश,वह भी कमाने
के लिए जा रहे हैं.इनकी विवशता व्यवस्था और
हुक्मरानों से कई सवाल एक साथ कर रहे हैं.गरीबी क्या होती है
ज़रा इनकी बेजा
चिथड़ों में लिपटी जिन्दगी में उतरकर देखिये.य़े बच्चे कह रहे हैं की वे
पढ़ना चाहते हैं लेकिन मज़बूरी में कमाने जा रहे हैं.घर में अनाज नहीं
है.जाहिर तौर पर ये मासूम अपनी इच्छा को कुचलकर परदेश जा रहे
थे.
रेल पुलिस की गिरफ्त में आया ये तीनों दलाल है.मोहम्मद मुस्लिम और
अजय राम जहां मधेपुरा जिले के सरौनी गाँव का रहनेवाला वाला है वहीँ पवन
कुमार सुपौल जिले के हरीपट्टी गाँव का रहने वाला है.पुलिस
अधिकारी प्रभारी थानाध्यक्ष,रेल थाना,सहरसा आत्मा किशोर सिंह घटना की पूरी जानकारी देते हुए आगे उचित कारवाई का भरोसा दे रहे
हैं. हर
साल बाढ़ की विभीषिका झेलने वाले कोसी के इस इलाके में गरीबी
बेकारी,भुखमरी,बीमारी और तरह--तरह की समस्याएं सुबह की पहली किरण के साथ ही
मुंह बाए खड़ी रहती है.इस इलाके में गरीबी कुलाचें भर रही है.खासकर के
पूर्वी और पश्चिमी तटबंध के भीतर की स्थिति तो और भी नाजुक और कलेजे को चाक
करने वाली है.पेट की आग बुझाना यहाँ पहाड़ खोदकर दूध निकाले के समान है.ऐसे
में गरीब हर वक्त किसी तारणहार की बाट जोहते नजर आते हैं.इस लाचारी में ये
गरीब माँ--बाप मानव तस्कर के झांसे में आ जाते हैं और महज कुछ रूपये की
लालच में अपने कलेजे के टुकड़ों को उनके हाथों बेच देते हैं.लेकिन हद की इंतहा देखिये मुक्त कराये गए इन बच्चों को वायदे के मुताबिक़ आजतक ठीक से पुनर्वासित भी नहीं किया गया है.जाहिर सी बात है की इतने संवेदनशील
मामले में सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम क्या खाक उठाये जायेंगे,सरकारी
फाईलों से गरीबों के नाम पर निकलने वाली करोड़ों--अरबों की योजनायें धरातल
पर नहीं पहुच पाती हैं यह उसी का नतीजा है.
कोसी का यह
इलाका जहां भूख फन काढ़े बैठी है.गरीब माँ--बाप अपने नौनिहालों को जानवरों
से भी कम कीमत में बेच रहे हैं.पिछले दस वर्षों में पंद्रह हजार से ज्यादा
बच्चे बिक चुके हैं.पांच सौ से ज्यादा बच्चों का तो कुछ अता-पता ही नहीं
है की वे जिन्दा भी हैं या नहीं.सबसे पहले हम आपको कुछ आंकड़ों की सच्चाई से रूबरू कराने जा रहे हैं।बचपन
बचाओ आन्दोलन एक सामाजिक संस्था द्वारा पिछले 15 वर्षों के दौरान बिहार से
बाहर बंधुआ मजदूरी कर रहे सात हजार से ज्यादा बच्चों को मुक्त कराया
गया.यही नहीं कुछ और संस्थाओं के प्रयास से तीन हजार से ज्यादा बाल मजदूर भी
सहरसा के आसपास के इलाके सहित सूबे के विभिन्य जगहों से मुक्त कराये
गए।आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की सहरसा में ऐसे बच्चों के लिए
वर्ष 2003 में 40 बाल श्रमिक विद्यालय खोले गए थे लेकिन वर्ष 2006 के अंत
होते--होते ये सारे विद्यालय बंद हो गए.यानि बाल मजदूरों के लिए सरकार कहीं
से भी गंभीर नहीं रही.
कोसी इलाके में मासूम सपनों की बलि चढाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है.सरकार के कागजी आंकड़े और जमीनी सच में कोई मेल नहीं है.गरीब के लिए ही लगभग सारी बड़ी योजनायें है लेकिन गरीब को इन योजनाओं का फलाफल मिलना तो दूर इन योजनाओं की पूरी जानकारी भी नहीं हो पाती है और उनकी अर्थी निकल जाती है.गरीबों की ज्यादातर योजनायें बाबू--हाकिम से लेकर बिचौलियों के बीच ही उछलती--फुदकती रह जाती है.ये गरीब अपने मासूम नौनिहालों के सपने बेचते हैं,उनकी जिन्दगी और उनकी अहमियत बेचते हैं.जबतक गरीबी और रोजगार का टोंटा रहेगा,इस इलाके में मानव तस्कर बच्चों को खरीदते रहेंगे.
कोसी इलाके में मासूम सपनों की बलि चढाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है.सरकार के कागजी आंकड़े और जमीनी सच में कोई मेल नहीं है.गरीब के लिए ही लगभग सारी बड़ी योजनायें है लेकिन गरीब को इन योजनाओं का फलाफल मिलना तो दूर इन योजनाओं की पूरी जानकारी भी नहीं हो पाती है और उनकी अर्थी निकल जाती है.गरीबों की ज्यादातर योजनायें बाबू--हाकिम से लेकर बिचौलियों के बीच ही उछलती--फुदकती रह जाती है.ये गरीब अपने मासूम नौनिहालों के सपने बेचते हैं,उनकी जिन्दगी और उनकी अहमियत बेचते हैं.जबतक गरीबी और रोजगार का टोंटा रहेगा,इस इलाके में मानव तस्कर बच्चों को खरीदते रहेंगे.
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